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Thursday, December 16, 2010

aaaaaaa

आतंकवाद

आतंकवाद ,नियति बन चुका है| हर रोज किसी न किसी शहर में धमाके की खबर सुनाई देती है साथ ही बाकि शहरों में रेड अलर्ट iकिया जाता है और दुसरे दिन सुबह सब कुछ सामान्य , सरकार बहरी  r

सुरंग हो रही दिल्ली

यह मेट्रोपोलेतन शहर है , जहा नई चमक -दमक , प्रगति  और विकाश के  नीचे दबी है दास्तान उजड़ने की ,  धरती का गर्भपात हो रहा सरेआम\\ खोदी  जा रही है मिटटी  रातो-रात/काटें जा रहें है पेड़ अंधाधुंध /ग्रीन बेल्टों में बन रही है कालोनिया ऊँची-ऊँची flatnuma  /खोखला हो रहा शहर खामोश है अपने दुःख को अन्तः करण में दबाये /

सितम्बर था सितमगर तो दिसम्बर है दर्दनाक

मित्रो दिल्ली मे हाड फोड़  टंड पड़ने लगी है !
रात बारह बजे के बाद  दिल सिकुड़ कर मुट्टी मे बंद होने लगता है  और एसे मे शारीर रजाई  मे सिकुड़ कर गठरी बन जाता है 
वह रे ठण्ड तुझमे  हाथी को चिटी बना  देने की ताकत है   मुझे मेरा गाँव यद् आ रहा  है


                                   आवो जलाये  शहर मे भी जाव का अलाव B
                                   जहा जुटेगा आस पड़ोस  
                                   तपेगा तन 
                                   फैलेगी रिस्तो की  गरमाहट 
                                   बतियाएंगे  दिल खोल कर  के शुख दुःख  
                                   ठण्ड  से होड़ लेने की  कुछ तो ताकत आएगी 




अगर गाँवों  मे  शर पैदा करने की ताकत है तो  शहरों मे भी  गाँवों  का दिल पैदा होना चाहिए 
पुत्र का पिता के पर्ती कुछ तो फर्ज होता है ..................................................archana tripathi

शहर में गावं

    आओ हमसब मिलकर  शहर में    भी जलाएं एक अलाव/ जहाँ पर जुटेगा आस-पड़ोस /तन तपेगा रिश्तों की गर्माहट से               सुख-दुःख मिलकर बाँट लेंगें /इसतरह  से शहर में सृजित होगा गॉंव /अगर इसने ही पैदा किया है शहर तो इसी से मिलेगी ताकत /    आखिर पिता के प्रति कुछ तो फर्ज होता है बेटे का