वास्तव में यह पुस्तक आपकी साहित्य साधना की सिद्धि है ,परकाया प्रवेश हो गया है | कबीर की कविता परस्पर संवाद में लिखी गयी है , जिसके लिए आलोचक को भी परस्पर संवादधर्मी होकर ही उस मर्म तक पहुँचना चाहिए ,इस संवाद धर्मिता को आपने धारण कर लिया है \काफी विचारोचेजक पुस्तक है यह \औपनिवेशिक आधुनिकता के बरक्स देशज आधुनिकता की स्थापना और उसे परंपरा की पुनर्नवता कहना पुस्तक की महत्वपूर्ण स्थापना है \अबतक आधुनिकता औद्वोगिक
क्रांति के इर्द-गिर्द ही घुमती रही है /उसे ही आधुनिकता की जननी मानकर यशोगान किया जाता रहा है ,अग्रवाल जी ने ठीक कहा है कि लोकवृत के निर्माण में काफी -हॉउस कि भूमिका रही है लेकिन जिस समाज में काफी -हॉउस का कांसेप्ट ही न हो वहां लोकवृत्त है ही नहीं यह कैसे संभव है