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Wednesday, August 10, 2011

landan ki aag ki lapaaat kahi bharat tak n pahuch jaye........


Friday, December 24, 2010

आगामी सदी में ...

बच्चों में बचपन, जवानों में यौवन,सीसे में दर्पण ,जीवन में सावन ,गावं में अखाड़ा ,शहर में सिंघाड़ा ,टेबल कि जगह पहाडा और पजामे में नाड़ा, ढूढ़ते रह जाओंगे|                                                                                                                          आँखों में पानी दादी कि कहानी ,प्यार के दो पल ,नल में जल ,घर में मेहमान ,मनुष्यता का सम्मान ,पड़ोस कि पहचान ,ब्रज का फाग ,तराजू में बट्टा और लडकियों का दुप्पट्टा ,ढूढ़ते रह जाओंगे |                                                                                  भरत सा भाई ,चूड़ी भरी कलाई ,शादी में शहनाई ,मंच पर कविताई ,गरीब कि खोली ,भौजी कि ठिठोली ,आंगन में रंगोली ,परोपकारी बन्दे और अर्थी को कंधे ,ढूढ़ते रह जाओंगे |                                                                                            गाता हुआ गावं .पनघट कि छावं ,किसानो का हल ,मेहनत का फल ,मेहमान कि आस ,छाछ का गिलाश , घूँघट कि ओट और थरथराते होठ ,पहलवान कि लंगोट ,ढूढ़ते रह जाओंगे |                                                                                           आपस में प्यार ,सयुंक्त परिवार ,बात- चीत का रिवाज दोस्ती में लिहाज ,सड़क किनारे प्याऊ ,संबोधन में ताऊ,दो रुपये उधार सरकारी अस्पताल , और नेता ईमानदार ढूढ़ते रह जाओंगे |                                                                                                                                            

Tuesday, December 21, 2010

अकथ कहानी प्रेम की पुरुषोत्तम अग्रवाल की एक महत्वपूर्ण पुस्तक


वास्तव में यह पुस्तक आपकी साहित्य साधना की सिद्धि है ,परकाया प्रवेश हो गया है | कबीर की कविता परस्पर संवाद में लिखी गयी है , जिसके लिए आलोचक को भी परस्पर संवादधर्मी होकर ही उस मर्म तक पहुँचना चाहिए ,इस संवाद धर्मिता को आपने धारण कर लिया है \काफी विचारोचेजक पुस्तक है यह \औपनिवेशिक   आधुनिकता के बरक्स देशज आधुनिकता की स्थापना और उसे परंपरा की पुनर्नवता कहना पुस्तक की महत्वपूर्ण स्थापना है \अबतक आधुनिकता औद्वोगिक  
क्रांति के इर्द-गिर्द ही घुमती रही है /उसे ही आधुनिकता की जननी मानकर यशोगान किया जाता रहा है ,अग्रवाल जी ने ठीक कहा है कि लोकवृत के निर्माण में काफी -हॉउस  कि भूमिका रही है लेकिन जिस समाज में काफी -हॉउस का कांसेप्ट ही न हो वहां लोकवृत्त है ही नहीं यह कैसे संभव है 

Sunday, December 19, 2010

सफ़ेद बर्फ जमाता है तन पर सफेदपोश नेता जमाते है तन ;मन और सारा वतन


      आज बहुत बार देखे हुआ दृश्य याद  आ रहा है |बगुले को खुद के पंखो में सिकुड़ते
हुए ;कुते को फुटपाथ पर भिखारी की गोद में लिपटकर सोते हुआ और पढ़ाकू नवजवान को अपने बीडी पिटे हुआ सहयात्री की फटी गुदरी में जबरन घुसे हुआ|ऐसे में जब कोई कुल्लू या मनाली में बर्फ के गोलों से खेलता है तब मुझे वह अपने देश के सफेदपोश    नेताओं की तरह लगता है जो देश के साथ खेलते है                                                                                                                  वे जबानी कम्बल बाटते है _चटखारे लेकर कागजी योजनाये चात्तें है |                                                                                        खुद ही खोदते है जाति और के गड्ढे - मईके पर  कहते की दूरियां ऐसे पाटते है |   |

Saturday, December 18, 2010

pahala kadam: तुष्टिकरण की नीति

pahala kadam: तुष्टिकरण की नीति: "राहुल गाँधी का बयां की मुस्लिम आतंकबाद से ज्यादा खतरा हिन्दू कट्टरबाद से है क्या यह राजनीतिक तुष्टिकरण नहीं है , राहुल जी कट्टरता को हिन्दू..."

तुष्टिकरण की नीति

राहुल गाँधी का बयां की मुस्लिम आतंकबाद से ज्यादा खतरा हिन्दू
कट्टरबाद से है क्या यह राजनीतिक तुष्टिकरण नहीं है , राहुल जी कट्टरता को हिन्दू से और आतंकबाद को मुस्लिम से जोड़ कर क्या साबित करना चाहते है जबकि उन्हें मालूम है जन्नत की हकीकत क्या है |